Tuesday, September 8, 2009

TRP.....TRP.....TRP....TRP....FRIDAY FEVER

कभी आपने टैम यानि टेलिविजन ऑडियन्स मेजरमेंट का कोई मीटर देखा है? कभी फ़ोन के ज़रिए आपने कार्यक्रमों के बारे में अपनी पसंद या नापसंद के बारे में किसी को कोई जानकारी दी है? कभी आपने कोई क्वेश्येनेयर (सवालों) के ज़रिए लिखित जवाब किसी को दिए हैं ? मैं ये तमाम सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि इनमें से सभी सवालों के जवाब मेरे और मेरे परिचित लोगों के लिए नहीं है। ये ही वो तरीक़े है जिनसे दुनिया के अन्य हिस्सों में टीआरपी यानि टेलिविजन रेटिंग प्वाईंट्स (TRP) निकाली जाती है। फ़िलहाल ऐसा लगता है कि ये सिर्फ़ एक नाम है और हर हफ़्ते जाने किस गणित से ये सभी चैनलों के कारोबार की क़िस्मत का फ़ैसला कर देता है। हर हफ़्ते चैनल वाले भी इसका बेसब्री से इंतज़ार करते है फिर चर्चा शुरू होती इस बार तो चढ़ गया, इस बार तो गिर गया, इसका श्रेय इसको जाता है, इसका ज़िम्मेदार वो है।देश के 80 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हिस्से मे आज भी टीवी की वो पहुंच नहीं है जो बड़े शहरों मे है। अलबत्ता दूरदर्शन हर छोटे से छोटे गांव में है टीआरपी में इसकी क्या स्थिति है ये मुझे नहीं पता लेकिन शर्तिया इन लोगों के ‘बनाए’ आंकड़ें इस बात को झुठला देंगे की दूरदर्शन सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला चैनल है। क्या टीआरपी की होड़ में भागने वाले चैनलों की मार्केटिंग टीम के लिए ज़रुरी इन नंबरों के लिए कोई लेन-देन भी होता है ? ये बहस भी कई बार छिड़ी लेकिन बेनतीजा रही। मैं आपको एक दिलचस्प वाक़या बताता हूं और ये आप में से बहुतों के साथ पेश आया होगा। मुझसे एक ग़ैर मीडिया मित्र ने पूछा की भाई नंबर वन चैनल कौनसा है। मैंने उस वक़्त की टीआरपी के हिसाब से उसे नाम बताया, वो चौंक गया और कहने लगा ये चैनल नंबर वन कैसे हो सकता है इसे तो हम न्यूज़ चैनल्स की श्रेणी में भी नहीं रखते हैं। फिर मैंने उसे समझाया कि मेरे भाई आजकल न्यूज़ चैनल पर टीआरपी का दबाव होता है। सभी चैनलों की मजबूरी है कि अब जिन्हें तुम न्यूज़ चैनल नहीं मानते उन्ही के नक़्शे क़दम पर चलते हुए वैसा ही कुछ करें।मेरे उस मित्र ने ही फिर मेरी बात को पुख़्ता करते हुए कहा, तुम ठीक कह रहे हो तभी तो न्यूज़ की दुनिया में अभी तक सम्मानित रहा एक चैनल भी यू-ट्यूब के विडियोज़ दिखाने को मजबूर हो गया है। चैनलों का ज़्यादातर समय इंटरटेनमेंट चैनलों को चुराकर, सौजन्य से की एक पत्ती चिपका कर हंसी मज़ाक, रिएलिटी शोज़ और उनमें दिखाई जाने वाली अश्लीलता को दिखाने में जाता है। कई कार्यक्रम तो हम सिर्फ़ न्यूज़ चैनल पर ही देख पाते हैं। रिएलिटी शोज़ की जिन अश्लीलताओं का ज़िक्र होता है वो कभी उन शोज़ में तो देखने को मिलती नहीं, अलबत्ता न्यूज़ चैनल दस बारह बार दिन में ज़रुर दिखा देते है। सच का सामना को लेकर बड़ी बहस हुई, इस शो का समय प्रोड्यूसर्स को रात 11 बजे के बाद केवल वयस्क दर्शकों के लिए की सूचना के साथ चलाने का फ़रमान जारी हुआ। लेकिन ये क्या इंटरटेनमेंट चैनल तो उस कंटेट को रात में दिखाने के लिए बाध्य हुआ लेकिन अपने न्यूज़ चैनल्स उसे सुबह से शाम तक टीआरपी के लिए दुहते रहे।हम मीडिया से जुड़े हुए है और इस खेल को थोड़ा बहुत समझ पाते है। लेकिन विश्वास जानिए वो आम दर्शक जिनके नाम पर या कथित तौर पर जिनसे पूछकर, जिनकी राय से ये टीआरपी जारी की जाती है उन्हे इसका बिल्कुल भी इल्म नहीं। मुझे लगता है हमें इस बहस को आगे ले जाना चाहिए और इन लोगों को बेनक़ाब करना चाहिए। इसके लिए सिर्फ़ लोगों को जागरुक करने की ज़रुरत है। ख़ास तौर पर चैनल्स को लामबंद होकर इस पर कोई स्टैंड लेना चाहिए नहीं तो इसी तरह न्यूज़ के साथ खिलवाड़ होता रहेगा। हाँ लेकिन मुझे तमाम पाठकों से अब भी उम्मीद है की किसी एक ने भी अगर टैम का मीटर देखा हो या टीआरपी नापने के तरीक़े को समझा हो तो कृपया इसके बारे में सूचित करें।

Tuesday, June 23, 2009

जीवो की निगाह में नेता..........

जीवो की निगाह में नेता..........................
गधे ने परमात्मा का लाख-लाख धन्यवाद किया - हे भगवान शुक्र है आपने मुझे नेता नहीं बनाया अन्यथा मुझे भी अधिकांश नेताओं की तरह निठल्ला रहकर धूर्तता से जीवन यापन करना पड़ता. यह सुनकर पास खडा नेता गधे पर गुराया, क्या समझते हो मै निठल्ला हूँ ?धूर्त हूँ?चालक हूँ ?गधा विनम्रता पूर्वक बोला - मुझे क्षमा करें आप ही तो किसी मुर्ख व्यक्ति को गधे की उपाधि देते हो, भला यह गली मै कैसे सेहेन कर सकता हूँ, मै भोला भाला इसीलिए तो भगवान से प्रार्थना करता हूँ की मुझे गधा ही रहने दो, कहीं मेरा सामना हिंदुस्तान के आप जैसे नेता से न हो जायेतभी वहां एक गिरगिट ने आकर कहा - मै तो मुसीबत में फस जाने पर ही अपने बचाव के लिए रंग बदलती हूँ परन्तु नेता तो क्षण- क्षण में रंग बदलते है, इतने में वहां कुत्ता भी आ पुहंचा और कहा - में अपने मालिक के घर की रखवाली में हमेशा तत्पर रहता हूँ परन्तु नेता तो मानव से ही घाट करता है, तभी फुंकारता हुआ सांप आ पुहंचा और बोला - में तो आताम्रक्षा मै ही डंक मारता हूँ परन्तु नेता तो स्वार्थवश पग- पग पर डंक मारता है. तभी वहां उड़ता हुआ कौवा आया वे बोला - मै तो अपनी जाती के लिए चालाकी से कम निकलता हू पर कुछ नेता अपने पेट के लिए मानव को भूदू मानते है और अपना पेट भरते है.एक एक करके कई पशु पक्षी आये और अपने जीवन से संतुष्ट हो कर नेता को कहने लगे की परमात्मा ने उन्हें अछी योनी में भेजा है.नेताजी पशु पशियो की बात सुनकर दो मिनट तो मोन रहे और फिर चल पड़े अगले शाहर की जनता को लुभावने वादों की लोलीपोप चुसाने.........................

तेरह बरस की इस मां से मिलिए.........

तेरह बरस की इस मां से मिलिए......
छत्‍तीसगढ के सुदुर सरगुजा के जिला मुख्‍यालय अंबिकापुर के जिला चिकित्‍सालय के नकीपुरिया वार्ड में तेरह बरस की मासूम जिंदगी के उस सवाल से जुझ रही है जिसका जवाब शायद विधाता के पास भी नहीं है। उरांव जनजाति की यह बच्‍ची पचास बरस के उस बुढ पडोसी की गलत नजरों का शिकार हुई जिसे इस बच्‍ची की मां काका और यह बच्‍ची नाना कहती थी। शराब के नशे में मदहोश बुजूर्ग ने इस बच्‍ची के साथ बलात्‍कार किया, मामला थाने पहुंचा और आरोपी को जेल भेज दिया गया। ल‍ेकिन बलात्‍कार के इस मामले के बाद बच्‍ची ने एक मासूम बिटिया को जन्‍म दिया है। तेरह बरस की बच्‍ची के साथ्‍ा वह हादसा हुआ है जिससे शायद पुरी जिंदगी वह उबर नहीं पाएगी। वहीं यह बच्‍ची खुद एक बच्‍ची की मां बन चुकी है । इन दोनों बच्चियों का जिनमें से एक मां है और एक बेटी दोनों का आखिर होगा क्‍या इसका जवाब किसी के पास नही है। मां बाप दिहाडी मजदुर है। परिवार की सबसे बडी तेरह बरस की इस बिटिया के साथ हुए हादसे के बाद उनके समझ ही नहीं आ रहा कि, वे अब करें तो क्‍या करें। गरीबी जिससे वे लगातार जुझ रहे है वह इस बात की इजाजत नहीं देती कि, परिवार का इस अनचाहे सदस्‍य की ढंग से देखभाल कर पाएं। बावजुद इसके कि, मासूम सदमें में है राहत का कोई हाथ अब तक नहीं बढा है। वहीं वह नन्‍ही परी जिसे दुनिया में आए कुछ घंटे ही हुए है वह अनजान है कि, आखिर आफत है तो क्‍या है । वह मासूम नन्‍ही आंखों से दुनिया को समझने की कोशिश कर कर रही है। इस पुरे मसले पर आप की राय सुझावों और प्रतिक्रियाओं की प्रतिक्षा रहेगी। आपकी सक्रियता अपेक्षित भी है और स्‍वाभाविक भी।

आखिर सफेद हो गया क्यों दोस्तों का खून.....

आखिर सफेद हो गया क्यों दोस्तों का खून.......
एक एक कदम पे मक्र है धोखा है जाल है.......... अब तो यहाँ से बच के निकलना मुहाल है........ देना पड़ेगा आपको जिसका अभी जवाब......... मेरे लबों पे आज एक एसा सवाल हे......... लिखेगें मेरे खून से वो अपनी दास्तान......हैरान हूँ..... उन्हें मेरा कितना ख्याल हे....... आखिर सफेद हो गया क्यों दोस्तों का खून........ इसमें जरूर ही किसी दुश्मन की चाल है....... पूछे न यक्ष की तरह कोई जहाँ सवाल...... प्यासों के वास्ते कोई ऐसा भी ताल है ?

जहाँ पर वो निरन्तर भूख की फसलें उगातें हैं.......

जहाँ पर वो निरन्तर भूख की फसलें उगातें हैं.......
जहाँ पर वो निरन्तर भूख की फसलें उगातें हैं........हमारे मुल्क में ऐसे कई लंबे अहाते हैं......जरूरत हैं कि तहकीकात हो ईमानदारी से.........सभी अपराध कुछ न कुछ गवाही छोड़ जाते हैं.......हमारे घर बदल डाले गये शमशानों में यारों........ जहाँ हम रोज मुर्दा हो चुके रिश्ते जलाते हैं........हुआ इतिहास का अनुवाद इतनी बेईमानी से.......जहाँ वाजिब था मातम हम वहाँ खुशियाँ मानते हैं........हमारी नींद के दुश्मन सवालों के जवाबों में ........ हमारे पास सुबह अखबार आतें .......... क्या आदमी गर आज भी सड़कों पे सोता हैं.........इन्हें कुछ मत कहो ये तो फकत मंदिर बनाते हैं..........

जल्लादों की बस्ती में हिफाजत की बातें...

जल्लादों की बस्ती में हिफाजत की बातें...
जल्लादों की बस्ती में हिफाजत की बातें.........वैसे ही है जैसे फांसी घर से जीने की उम्मीदें रखना या हिफाजत की बातें जल्लादों से करना..उत्तर प्रदेश में बसपाई सत्ता मदांध में हैं और नौकरशाही पट्टा बांधे पालतू पशु से भी गई बीती। ...और हम आप कायर भेंड़ों से बदतर। एक इंजीनियर की हत्या का वहशियाना तौर-तरीका खुद ही यह चीख-चीख कर बता रहा है कि धन वसूली का हवस कितनी घिनौनी शक्ल ले चुका है। इस हवस और मुंबई में हमला करने वाले आतंकियों के हवस में क्या कोई फर्क पाते हैं आप? सत्ता व्यवस्था पर काबिज नेता एक इंजीनियर को पीट-पीट कर महज इसलिए मार डाले कि उसने 'उपहार-बंदोबस्त' में कोताही क्यों की, तो क्या यह देश में बाहर से सेंध लगा रहे आतंकियों से ज्यादा घातक नहीं है? प्रदेश भर में विधायक और नौकरशाह मिल कर 'बर्थ-डे गिफ्ट' के लिए जो वसूली का आपराधिक अभियान चलाए बैठे हैं, वह जिस हवस का परिणाम है, क्या आप उसे देशद्रोही वहशियों से कहीं अधिक नुकसानकारी नहीं मानते?.................................

Tuesday, June 16, 2009

मुआवजा ठोंक सकेंगे मजदूर

अब नरेगा मजदूर ही नहीं, अन्य श्रमजीवी भी मेहनताना भुगतान में विलंब होने पर सरकारी विभागों के खिलाफ मुआवजे का दावा ठोंक सेंगे। कॉम्पेनसेशन ऑफ वेजेज ऐक्ट (वेतन अधिनियम के तहत मुआवजा का प्रावधान) तो पहले से मौजूद था। लेकिन, नौ साल पुराने झारखंड राज्य में पहली बार इसकी सुनवाई के लिये एक सहायक श्रमायुक्त अधिसूचित किया जा रहा है। यह संभव हुआ है नरेगा के आर्किटेक्‍ट कहे जा रहे चर्चित अर्थशास्त्री डा ज्यां द्रेज की पहल पर।
खूंटी में नरेगा मजदूरों के महीनों लंबित मेहनताने के एवज में मुआवजा की मांग कर रहे डा द्रेज की शिकायत पर राजभवन ने गुरूवार को स्थानीय प्रशासन को फरमान सुनाया कि 24 घंटे में भुगतान सुनिश्चित करे। राजभवन की सख्ती पर ढीले-ढाले प्रशासन में खलबली मच गयी। उपायुक्त सहित कई अधिकारी छुट्टियों पर थे। लेकिन, मामला राजभवन की साख का था। बात शीर्ष अधिकारियों तक पहुंची। वहां पता चला कि वेतन अधिनियम के तहत मुआवजा प्रावधान के लिये आवश्यक अधिकारी ही राज्य में नियुक्त नहीं हैं। चौबीस घंटे में राजभवन के आदेश का पालन कैस हो?
दरअसल, नरेगा के सेक्शन 30 में कहा गया है कि अगर मेहनताना भुगतान में विलंब हो तो कॉम्पेनसेशन ऑफ वेजेज ऐक्ट के तहत मुआवजा दिया जाये। अमूमन हर राज्य में इसके लिये एक अधिकारी प्रतिनियुक्त होता है, लेकिन झारखंड में अबतक नहीं था। आनन-फानन में सचिवालय स्तर से निर्णय लिया गया कि इस कार्य के लिये शुक्रवार को नोटिफिकेशन निकाल कर एक सहायक श्रमायुक्त को ऑथोरिटी सौंपी जाये, जो शनिवार से खूंटी में कैम्प करेंगे। बहरहाल, चौबीस घंटे की जगह, अडतालीस घंटे ही सही! शनिवार से नरेगा मजदूरों को विंलब का यह मुआवजा मिलने लगे तो न केवल उन्हें राहत मिलेगी, बल्कि सुस्त प्रशासन पर भी दबाव बनेगा। आखिर, सरकारी खजाने पर इस बेजा बोझ के लिये दोषियों की शिनाख्त तो शुरू होगी।